🌿 मृदा (मिट्टी) संसाधन
मिट्टी पृथ्वी की ऊपरी सतह की वह परत है, जिसमें पौधे उगते हैं। यह विभिन्न खनिजों, जैविक पदार्थों, जल और वायु का मिश्रण होती है। मिट्टी कृषि उत्पादन, वनस्पति वृद्धि और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन है।
🌱 मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया (मृदा निर्माण - Pedogenesis):
- चट्टानों के विघटन और अपक्षय (Weathering) से मिट्टी बनती है।
- इस प्रक्रिया में तापमान, जल, वायु, वनस्पति और जीव-जंतुओं की भूमिका होती है।
- जैविक और अजैविक कारकों के संयुक्त प्रभाव से मिट्टी के विभिन्न स्तर (Horizons) बनते हैं।
🌾 भारत में मृदा के प्रकार:
1️⃣ जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil):
- विशेषताएँ: सबसे उपजाऊ मिट्टी, पीली से भूरे रंग की।
- स्थिति: गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल।
- उपयुक्त फसलें: गेंहू, धान, गन्ना, दलहन।
2️⃣ काली मिट्टी (Black Soil):
- विशेषताएँ: गहरी काली, कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त, जल धारण क्षमता अधिक।
- स्थिति: महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश।
- उपयुक्त फसलें: कपास, सोयाबीन, मूंगफली, ज्वार।
3️⃣ लाल मिट्टी (Red Soil):
- विशेषताएँ: लौह तत्वों के कारण लाल रंग, जल संरक्षण क्षमता कम।
- स्थिति: कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, झारखंड।
- उपयुक्त फसलें: बाजरा, ज्वार, मक्का, आलू।
4️⃣ लेटराइट मिट्टी (Laterite Soil):
- विशेषताएँ: अम्लीय, जैविक पदार्थों में कम, वर्षा के कारण अधिक धुली हुई।
- स्थिति: केरल, कर्नाटक, असम, तमिलनाडु।
- उपयुक्त फसलें: चाय, कॉफी, काजू, रबर।
5️⃣ पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil):
- विशेषताएँ: जैविक पदार्थों से भरपूर, ठंडी और नम जलवायु में पाई जाती है।
- स्थिति: हिमालय क्षेत्र, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश।
- उपयुक्त फसलें: चाय, फल, औषधीय पौधे।
6️⃣ मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil):
- विशेषताएँ: रेतयुक्त, जल संरक्षण क्षमता कम, खनिज लवणों से युक्त।
- स्थिति: राजस्थान, गुजरात के शुष्क क्षेत्र।
- उपयुक्त फसलें: खजूर, ज्वार, बाजरा (सिंचाई द्वारा)।
⚠️ मृदा अपरदन (Soil Erosion) और इसके कारण:
मृदा अपरदन का अर्थ है मिट्टी का पानी, हवा या मानवीय गतिविधियों के कारण बह जाना।
मुख्य कारण:
- वनों की कटाई (Deforestation)
- अधिक चराई (Overgrazing)
- असंयमित कृषि (Unplanned farming)
- खनन (Mining)
⚠️मृदा की लवणीयता तथा क्षारीयता
मृदा की लवणीयता और क्षारीयता, कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख मुद्दे हैं। ये दोनों स्थितियां मिट्टी में खनिज लवणों की अधिकता के कारण होती हैं।
लवणीयता: जब मिट्टी में घुलनशील लवणों (जैसे सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम के क्लोराइड और सल्फेट) की मात्रा अधिक हो जाती है, तो मिट्टी लवणीय हो जाती है। यह स्थिति आमतौर पर शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई के कारण होती है, जहां पानी का वाष्पीकरण होने से लवण मिट्टी की सतह पर जमा हो जाते हैं।
क्षारीयता: जब मिट्टी में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, तो मिट्टी क्षारीय हो जाती है। उच्च सोडियम स्तर मिट्टी की संरचना को बिगाड़ते हैं, जिससे पानी और हवा का प्रवाह कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप पौधों की जड़ों को नुकसान होता है और उनकी वृद्धि बाधित होती है।
लवणीयता और क्षारीयता के प्रभाव:
पौधों की वृद्धि में बाधा: उच्च लवणता और क्षारीयता पौधों के लिए विषैले होते हैं और उनकी वृद्धि को रोकते हैं।
मिट्टी की संरचना में परिवर्तन: ये स्थितियां मिट्टी की संरचना को बिगाड़ती हैं, जिससे पानी और हवा का प्रवाह कम हो जाता है।
पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी: उच्च लवणता और क्षारीयता मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम कर देते हैं।
फसल उत्पादन में कमी: इन स्थितियों के कारण फसल उत्पादन में काफी कमी आ जाती है।
लवणीयता और क्षारीयता का प्रबंधन:
जल निकासी: अतिरिक्त लवणों को निकालने के लिए जल निकासी एक महत्वपूर्ण उपाय है।
जिप्सम का उपयोग: जिप्सम सोडियम को बदलकर मिट्टी की क्षारीयता को कम करने में मदद करता है।
फसल चक्र: लवण सहनशील फसलों को उगाकर मिट्टी की लवणीयता और क्षारीयता को कम किया जा सकता है।
जैविक पदार्थ: जैविक पदार्थ मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं और लवणीयता और क्षारीयता को कम करने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष:
मृदा की लवणीयता और क्षारीयता कृषि उत्पादकता के लिए एक गंभीर खतरा हैं। इन समस्याओं का प्रबंधन करके हम कृषि भूमि की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
✅ मृदा संरक्षण के उपाय (Soil Conservation Methods):
- फसल चक्रण (Crop Rotation): मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना।
- वनीकरण (Afforestation): वृक्षारोपण द्वारा मिट्टी का संरक्षण।
- समोच्च हल चलाना (Contour Ploughing): ढलानों पर मिट्टी के बहाव को रोकना।
- टेरेस खेती (Terrace Farming): पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेती करना।
- पवनरोधी वृक्षारोपण (Windbreaks): रेगिस्तानी क्षेत्रों में तेज हवाओं से मिट्टी को बचाना।
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