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जलाक्रांतता किसे कहते है ? what is waterlogging ?

 अति सिंचन से जलाक्रांतता ( water Logging ) व समस्या पैदा होती है जिससे मृदा में लवणीय और क्षारीय गुण बढ़ जाती है जो भूपि के निम्नी करण के लिए उत्तरदायी होते हैं ।

जल भराव तब होता है, जब जल को कहीं जाने का मार्ग नहीं मिलता और वह एक ही जगह कई समय तक वहीं रहती है। सामान्यतः घर के बर्तनों में एकत्रित जल को भी कहीं जाने का मार्ग नहीं मिलता, लेकिन वह केवल कुछ घंटों या ज्यादा से ज्यादा एक से दो दिन ही रहता है। उसके बाद उस जल को बदल दिया जाता है और ढक कर रखा जाता है, इस कारण इससे कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन वही जल कई दिनों तक पड़े रहने पर उसमें जीवाणु पनपने लगते हैं। यह भी जल प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है।

जलभराव से पौधे पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मिट्टी में जलभराव से पौधे की जड़ें सड़ने लगती हैं, फलस्वरूप पौधा सूखने या मुरझाने लगता है। जरुरत से ज्यादा पानी देने से पौधों में फफूंद रोग और कीट लगने लगते हैं। मिट्टी चिपचिपी और दलदली हो जाती है, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है। पौधे से पत्तियां गिरने लगती हैं।

जल भराव के प्रमुख कारण

  •  भूमि में जलमग्नता खेतों की अत्यधिक जल से सिंचाई
  • अधिक वर्षा
  • सीमित जल निकास
  • नदियों में बाढ़ आना
  • भूमि की पारगम्यता में कमी
  • सिंचाई जल में लवणों की उपस्थिति 
  • भूमि का ऊँचा – नीचा होना आदि कारणों से होती है ।

जलभराव के प्रभाव

  • फसल जड़ क्षेत्र में अवायवीय स्थिति का निर्माण।
  • पानी लविंग जंगली पौधों का बढ़ना।
  • मृदा का तापमान गिरना
  • हानिकारक लवण का संचय

भूमि के निम्निकरण के कारण

  • वनो का तेजी से कटाव
  • अतीपशुचारण
  • खनन कार्य
  • जनसंख्या में तेजी वृद्धि