भारत में, उत्तर के विस्तृत मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानों में मिलती है। यह अत्यंत ऊपजाऊ है इसे जलोढ़ या कछारीय मिट्टी कहा जाता है यह भारत के 43% भाग में पाई जाती है| यह मिट्टी सतलुज, गंगा, यमुना, घाघरा,गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है| इस मिट्टी में कंकड़ नही पाए जाते हैं। इसमे नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है। पोटाश, फॉस्फोरिक एसिड और क्षार का अनुपात पर्याप्त होता है।
जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती है।
1. खादर
पुराने जलोढ़ को खादर कहते हैं
2. बांगर
नदियों के आस पास के क्षेत्र में प्रति वर्ष बहा कर लाइ जाने वाली अधिक उपजाऊ मृदा को बांगर कहते हैं |
लोढ़ मिट्टी कहाँ पाई जाती है?
- उत्तर प्रदेश
- बिहार
- पंजाब
- गुजरात
- राजस्थान
- असम
- पश्चिम बंगाल
जलोढ़ मिट्टी में होने वाली फसलें
- तंबाकू
- कपास
- चावल
- गेहूं
- बाजरा
- ज्वार
- मटर
- लोबिया
- काबुली
- चना
- काला
- चना
- सोयाबीन
- मूंगफली
- सरसों
- तिल
- जूट
- मक्का,
- तिलहन फसलें
- सब्ज़ियो
- फल
जलोढ़ मिट्टी का पीएच मान कितना होता है ?
जलोढ़ मिट्टी का पीएच 6.5 से 8.2 के बीच होता है। जलोढ़ मिट्टी में गाद, रेत, मिट्टी और बजरी के साथ-साथ ह्यूमस, चूना और कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
जलोढ़ मिट्टी किस रंग की होती है ?
जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्का धूसर होता है।
जलोढ़ मिट्टी के उपयोग क्या हैं?
जलोढ़ मिट्टी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कई कार्य प्रदान करते हैं। जलोढ़ मिट्टी आसन्न जल में बहने वाले अवसादों और पोषक तत्वों को हटा देती है । वे नदियों से अन्य प्रदूषकों को भी हटा सकते हैं और निचले इलाकों के समुदायों के लिए पानी की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं