एक पारिस्थितिकी तंत्र पारिस्थितिकी की एक संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई है जहां रहने वाले जीव एक दूसरे और आसपास के वातावरण के साथ बातचीत करते हैं। दूसरे शब्दों में, एक पारिस्थितिकी तंत्र जीवों और उनके पर्यावरण के बीच परस्पर क्रियाओं की एक श्रृंखला है। “इकोसिस्टम” शब्द पहली बार 1935 में एक अंग्रेजी वनस्पतिशास्त्री एजी टांसले द्वारा गढ़ा गया था।पारितन्त्र या पारिस्थितिक तन्त्र में सभी जीव जैसे कि पौधे, जन्तु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा भौतिक कारकों में परस्पर अन्योन्यक्रिया होती हैं तथा प्रकृति में सन्तुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितन्त्र बनाते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेंसली नामक वैज्ञानिक ने सन 1935 में किया था टेंसिले के अनुसार प्रकृति में उपस्थित सजीवों एवं निर्जीव की परस्पर या आपसी क्रियाओं के परिणाम स्वरूप बनने वाला तंत्र पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है।
पारिस्थितिक तंत्र के कार्य
पारिस्थितिक तंत्र के कार्य इस प्रकार हैं:
- यह आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है, जीवन प्रणालियों का समर्थन करता है और स्थिरता प्रदान करता है।
- यह जैविक और अजैविक घटकों के बीच पोषक तत्वों के चक्रण के लिए भी जिम्मेदार है।
- यह पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न पोषी स्तरों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
- यह जीवमंडल के माध्यम से खनिजों का चक्र करता है।
- अजैविक घटक कार्बनिक घटकों के संश्लेषण में मदद करते हैं जिसमें ऊर्जा का आदान-प्रदान शामिल होता है।
तो एक पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यात्मक इकाइयाँ या कार्यात्मक घटक जो एक पारिस्थितिकी तंत्र में एक साथ काम करते हैं:
- उत्पादकता – यह बायोमास उत्पादन की दर को संदर्भित करता है।
- ऊर्जा प्रवाह – यह अनुक्रमिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ऊर्जा एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर तक प्रवाहित होती है। सूर्य से ग्रहण की गई ऊर्जा उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक और फिर डीकंपोजर और अंत में वापस पर्यावरण में प्रवाहित होती है।
- अपघटन- यह मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की प्रक्रिया है। अपघटन के लिए शीर्ष-मृदा प्रमुख स्थल है।
- पोषक चक्रण – एक पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों का उपभोग किया जाता है और विभिन्न जीवों द्वारा उपयोग के लिए विभिन्न रूपों में वापस पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।
पारिस्थितिक पिरामिड
एक पारिस्थितिक पिरामिड एक पारिस्थितिकी तंत्र के क्रमिक ट्रॉफिक स्तरों की संख्या, ऊर्जा और बायोमास का चित्रमय प्रतिनिधित्व है। चार्ल्स एल्टन 1927 में पारिस्थितिक पिरामिड और उसके सिद्धांतों का वर्णन करने वाले पहले पारिस्थितिकीविद् थे।
उत्पादक स्तर से लेकर उपभोक्ता स्तर तक जीवों के बायोमास, संख्या और ऊर्जा को पिरामिड के रूप में दर्शाया जाता है; इसलिए, इसे पारिस्थितिक पिरामिड के रूप में जाना जाता है।
पारिस्थितिक पिरामिड के आधार में उत्पादक शामिल हैं, इसके बाद प्राथमिक और द्वितीयक उपभोक्ता शामिल हैं। तृतीयक उपभोक्ता शीर्ष पर हैं। कुछ खाद्य श्रृंखलाओं में, चतुर्धातुक उपभोक्ता खाद्य श्रृंखला के बिल्कुल शीर्ष पर होते हैं।
उत्पादक आम तौर पर प्राथमिक उपभोक्ताओं को पछाड़ते हैं और इसी तरह, प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीयक उपभोक्ताओं को पछाड़ते हैं। और अंत में, शीर्ष शिकारी भी अन्य उपभोक्ताओं की तरह उसी प्रवृत्ति का पालन करते हैं; जिसमें उनकी संख्या द्वितीयक उपभोक्ताओं की तुलना में काफी कम है।
उदाहरण के लिए, ग्रासहॉपर कपास और गेहूं जैसी फसलों को खाते हैं, जो भरपूर मात्रा में होती हैं। इन टिड्डों का आम चूहे द्वारा शिकार किया जाता है, जो तुलनात्मक रूप से संख्या में कम होते हैं। कोबरा जैसे सांप चूहों का शिकार करते हैं। अंतत: शीर्ष परभक्षियों जैसे ब्राउन स्नेक ईगल द्वारा सांपों का शिकार किया जाता है।
पारिस्थितिक तंत्र के घटक
पारिस्थितिक तंत्र के 2 मुख्य भाग होते हैं जीवित जीवधारी तथा निर्जीव वातावरण। समस्त जीवधारी परिस्थितिक तंत्र का जैविक घटक तथा निर्जीव वातावरण इसका अजैविक घटक होता है।
A . अजैविक घटक
ओडम 1971 के किसी पारिस्थितिक तंत्र के अजैविक घटकों को तीन भागों में बांटा है।
- अकार्बनिक पोषक
- कार्बनिक योगिक
- जलवायु या भौतिक कारक
1. अकार्बनिक पोषक
इनमें जल कैलशियम पोटैशियम मैग्निशियम जैसे खनिज फास्फोरस नाइट्रोजन सल्फर जैसे लग्न तथा ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन जैसे-जैसे शामिल है यह सब हरे पौधे के पोषक तत्व अथवा कच्ची सामग्री है।
2. कार्बनिक यौगिक
इसमें मृत पौधों व जंतुओं से उत्पन्न प्रोटीन शर्करा रिपीट जैसे कार्बनिक यौगिक और इनके अपघटन से उत्पन्न माध्यमिक या अंतिम उत्पाद जैसे यूरिया तथा ह्यूमस सम्मिलित है।
3. भौतिक कारक
वातावरण के भौतिक भाग में जलवायु कारक उदाहरण तथा वायु नमी तथा प्रकाश आते हैं सौर ऊर्जा मुख्य भौतिक घटक है।
B जैविक घटक
सभी जीवो को पोषण वृद्धि तथा जनन के लिए खाद पदार्थों की आवश्यकता होती है खाद पदार्थों से जीवन के लिए ऊर्जा मिलती है पारिस्थितिक तंत्र के जैव घटक में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का स्रोत सूर्य है विभिन्न पोषण विधियों के आधार पर जैविक घटक को निम्न प्रकारों से विभक्त किया गया है।
1. उत्पादक या स्वपोषी
यह प्रकाश संश्लेषण पौधे हैं जिसमें कुछ प्रकार संश्लेषी जीवाणु भी सम्मिलित है। इनमें हरा वर्णक पर्णहरिम होता है यह सूर्य ऊर्जा के सहायता से अकार्बनिक पोषक तत्वों से अपने कार्बनिक खाद पदार्थ स्वयं बना लेते हैं इस प्रक्रम में आणविक ऑक्सीजन जो जंतुओं को जीवित रखने के लिए अनिवार्य है विमुक्त हो जाती है तथा जो कार्बनिक पदार्थ बनते हैं उनमें सूर्य की ऊर्जा संचित रहती है प्रकाश संश्लेषि पौधों को उत्पादक कहते हैं।
2. उपभोक्ता या परपोषी
इनमें कौन हरीम नहीं होता है यह अपना आहार हरे पौधों से लेते हैं इन्हें उपभोक्ता कहते हैं इनमें जंतु कवक तथा जीवाणु सम्मिलित हैं इनको निम्नलिखित पोषण विधियों में विभक्त किया जाता है।
(A) शाकाहारी
ऐसे जंतु तथा परजीवी पौधों को अपना खाद पदार्थ सीधी में प्रकाश संश्लेषण पौधों से प्राप्त करते हैं इन्हें शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता कहते हैं उदाहरण के लिए टिड्डे तिलिया मधुमक्खियां तोता खरगोश बकरी गाय हिरन आते आते इस संवर्ग में आते हैं।
(B) मांसाहारी
यह ऐसे जंतु है जो शाकाहारी जंतु को खाते हैं इन्हें द्वितीयक उपभोक्ता भी कहते हैं उदाहरण ब्रिंग व झिंगुर छोटी मछलियां मेंढक छिपकली सांप तथा छोटे पक्षी जैसे चिड़िया कौवा कठफोड़वा वा मैना आदि।
(C) सर्वोच्च मांसाहारी
यह ऐसे जंतु हैं जिन को दूसरे जंतु मारकर नहीं खाते इन्हें तृतीयक उपभोक्ता कहते हैं उदाहरण शार्क मछलियां मगरमच्छ उल्लू चील तथा बाजा आदि।
3. अपघटक
यह वह जीव है जो विभिन्न कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में घटित करते हैं इस प्रकार भोजन जो ऐसे प्राथमिक रूप में उत्पादकों ने संचित किया या अन्य उपभोक्ताओं ने प्रयोग किया वातावरण में वापस लौट आने का कार्य अपघटक ही करते हैं। ऐसे जियो के प्रमुख उदाहरण मृतोपजीवी कवक तथा जीवाणु इत्यादि हैं।
यह पारिस्थितिक तंत्र की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हरे पौधे भूमि से कई खनिज वाला मान लेते हैं जो उनकी वृद्धि तथा परिवर्धन के लिए अनिवार्य होते हैं कैल्शियम पोटेशियम लोहा फास्फोरस तथा नाइट्रोजन जैसे खनिज जंतुओं के लिए भी आवश्यक होते हैं और यह इन्हें हरे पौधों से लेते हैं।
वन का पारिस्थितिक तंत्र
वन का पारिस्थितिक तंत्र स्वयं में परिपूर्ण एवं स्वतंत्र नियामक पारिस्थितिक तंत्र होता है वन का पारिस्थितिक तंत्र दो प्रमुख घटकों से मिलकर बना होता है
(A) अजैविक घटक
एक वन के पारिस्थितिक तंत्र में दो प्रकार के जैविक घटक होते हैं एक अकार्बनिक जैविक घटक दूसरा कार्बनिक
वन में उपस्थित हरे पौधे इन अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण करते हैं ।
(B) जैविक घटक
इसके अंतर्गत में ना प्रकार के जीव धारियों पेड़ पौधे सम्मिलित किए गए हैं
- उत्पादक
- उपभोक्ता
- अपघटक
1. उत्पादक
वनों में पाए जाने वाले समस्त हरे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा पूर्ण हरीम के सहायता से सौर ऊर्जा जल एवं CO2 का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं बनाते हैं जिन्हें उत्पादक कहते हैं क्योंकि 1 के प्रकार के होते हैं अतः प्रत्येक प्रकार के वन में अलग-अलग पौधे पाए जाते हैं वनों में पाए जाने वाले सामान्य पौधे सैगोन, साल, पलाश, देवदार, पाइनस आदि हैं।
2. उपभोक्ता
उनके अंतर्गत वनों के ऐसे जीवधारी सम्मिलित किए जाते हैं जो अपने पोषण हेतु वन्यजीवों या पेड़ पौधों पर आश्रित होते हैं वनों में तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं।
प्राथमिक उपभोक्ता हाथी नीलगाय लोमड़ी बंदर गिलहरी हिरण एवं शाकाहारी पक्षी वन के प्रमुख प्राथमिक उपभोक्ता हैं यह भोजन हेतु पेड़ पौधों पर आश्रित होते हैं।
द्वितीयक उपभोक्ता इनके अंतर्गत वनों में उपस्थित ऐसे जीव जंतु आते हैं जो कि अपने पोषण के लिए प्राथमिक उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं तथा शिकार करके उनके मांस को खाकर अपना पोषण करते हैं उदाहरण गिरगिट छिपकली सांप कौवा सियार भेड़िया नेवला आदि।
तृतीयक उपभोक्ता इनके अंदर गधे से जंतुओं को सम्मिलित किया गया है जो अपने भोजन हेतु द्वितीयक उपभोक्ता ऊपर आश्रित होते हैं इनका शिकार करके अपना भरण-पोषण करते हैं इन्हें सर्वोच्च मांसाहारी जंतु भी कहते हैं उदाहरण बाघ शेर चीता आदि।
3. अपघटक
इन के अंतर्गत ऑन सूक्ष्म जीवों को सम्मिलित किया गया है जो उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के मृत्युंजय गाड़ी शारीरिक पदार्थों एवं शरीर का गठन करके उन्हें अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करके पुनः मृदा में वापस मिला देते हैं इन्हें अपघटक कहते हैं उदाहरण के लिए जीवाणु व कवक।
घास के मैदान का पारिस्थितिक तंत्र
घास के मैदान का पारिस्थितिक तंत्र अन्य पारिस्थितिक तंत्र से भिन्न है यह घास स्थल ऐसे क्षेत्रों में अधिकता में पाए जाते हैं जहां पर औसत वर्षा 25 से 75 सेंटीमीटर तक होती है, इन हार स्थलों में लंबी लंबी घास एवं झाड़ियों की अधिकता होती है।
जबकि वृक्षों का दूर-दूर तक अभाव होता है अफ्रीका में सवाना घास मैदान ऑस्ट्रेलिया अर्जेंटीना संयुक्त राष्ट्र अमेरिका साइबेरिया दक्षिण रूस आदि देशों में बड़े-बड़े घास के मैदान पाए जाते हैं। घास के मैदानों की मिट्टी फेमस युक्त होती है जिसके कारण इस की उपजाऊ शक्ति अधिक होती है भारतवर्ष के संपूर्ण भाग के लगभग 8% भाग में घास के मैदान उपस्थित हैं।
घास के मैदान के पारिस्थितिक तंत्र के प्रमुख संचालनात्मक एवं क्रियात्मक घटक
एक प्राकृतिक घास के मैदान के पारिस्थितिक तंत्र में प्रमुख संचालन आत्मा के क्रियात्मक घटक निम्नलिखित हैं।
- अजैविक घटक
- जैविक घटक
1. अजैविक घटक घास के मैदानों में भी दो प्रकार के अजैविक घटक पाए जाते हैं।
a.अकार्बनिक घटक उदाहरण जलवायु प्रकाश वर्षा के लिए तत्व जैसे जैसे CO2 n2 O2 आदि।
b. कार्बनी घटक उदाहरण प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट अमीनो अम्ल वसा लिपिड्स आदि ये सभी घटक पौधों और जंतुओं के काम आते हैं।
2. जैविक घटक इन के अंतर्गत निम्न प्रकार के अधिकारी एवं पेड़ पौधे सम्मिलित किए गए हैं।
a. उत्पादक इसके के अंतर्गत घास के मैदान में उपस्थित समस्त प्रकार की हरि ओम शाकीय पौधे झाड़ियां व वृक्ष आते हैं। जो कि सूर्य की सहायता से अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा बनाने में सक्षम होते हैं उदाहरण दूब घास, स्पोरोबोल्स डिजोटेरिया।
b. उपभोक्ता इसके अंतर्गत घास के मैदान में उपस्थित उन सभी जीवो को सम्मिलित किया गया है जो कि अपने भोजन हेतु अन्य जीवो एवं पेड़ पौधे पर आश्रित होते हैं घास के मैदान के उपभोक्ता निम्न प्रकार के होते हैं।
प्राथमिक उपभोक्ता घास के मैदान में पाए जाने वाले सभी उपभोक्ता को ही शाकाहारी कहते हैं तथा अपने भोजन हेतु उत्पादों पर निर्भर होते हैं प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं।
द्वितीय उपभोक्ता इनके अंतर्गत घास के मैदान में उपस्थित हुए सभी मांसाहारी जंतु औरतें हैं जो शाकाहारी जंतु का शिकार करते हैं तथा उनका मांस खाते हैं उदाहरण के लिए सांप भेड़िया लकड़बग्घा कौवा लोमड़ी आदि।
तृतीयक उपभोक्ता इसके अंतर्गत पूर्ण भुगतान को सम्मिलित किया गया है जोकि द्वितीय उपभोक्ताओं का शिकार करते हैं इन्हें सर्वोच्च मांसाहारी भी कहते हैं उदाहरण के लिए मोर बाज चील आदि।
3. उपघटक घास के मैदान में बहुत से जीवाणु का वक्त पाए जाते हैं जो कि वहां उपस्थित सभी पदार्थों एवं उपभोक्ताओं के मृत शरीर एवं उनके द्वारा उत्सर्जित पदार्थों का उद्घाटन करते हैं इसे अपघटक कहा जाता है।
मरुस्थल का पारिस्थितिक तंत्र
पृथ्वी के ऐसे भोपाल जहां पर औसत वार्षिक व्हाट्सएप 25 सेंटीमीटर से कम होती है उन्हें मरुस्थल के अंतर्गत सम्मानित किया जाता है क्योंकि ऐसे स्थानों का तापमान अधिक होता है तथा यहां पानी की कमी होती है अतः मरुस्थलीय स्थानों पर पेड़ पौधे एवं जंतुओं की संख्या कम होती है एक मरुस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में निम्नलिखित इन घटक होते हैं।
जैविक घटक
उत्पादक इनके अंतर्गत घनी झाड़ियां कुछ प्रकार की घास तथा कुछ हरे पौधे जैसे नागफनी बबूल कटीले पौधे आदि पाए जाते हैं।
उपभोक्ता मरुस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं।
प्राथमिक उपभोक्ता हरे पौधों को खाने वाले जंतु जैसे ऊंट भेड़ बकरी गधा एवं शाकाहारी पक्षी आदि।
द्वितीयक उपभोक्ता मांसाहारी जंतु जैसे सांप लकड़बग्घा भेड़िया सियार आदि।
तृतीयक उपभोक्ता इनके अंतर्गत उन सभी को सम्मिलित किया जाता है जो उपरोक्त दोनों प्रकार के वक्ताओं का भक्षण करते हैं उदाहरण गिद्ध बाज चील।
अपघटक क्योंकि मरुस्थल में वनस्पतियों की कमी होती है। अतः आप यहां पर अब घटकों की संख्या कम होती है यहां पर ऐसे जीवाणु यम कवक अब घटकों के रूप में पाए जाते हैं जिनमें उच्च ताप को सहने की क्षमता होती है।
जल का पारिस्थितिक तंत्र
इसके अंतर्गत जल में पाए जाने वाले परिस्थिति तंत्र को सम्मिलित किया गया है।
जैसे तालाब झील के पारिस्थितिक तंत्र नदी का पारिस्थितिक तंत्र समुद्र का पारिस्थितिक तंत्र या समुद्र तटीय पारिस्थितिक तंत्र।
तालाब झील का पारिस्थितिक तंत्र
एक तालाब झील अपने आप में पूर्ण एवं एक स्वतः नियामक पारिस्थितिक तंत्र होता है यह पारिस्थितिक तंत्र दोनों आवश्यक घटको अजैविक घटक एवं जैविक घटक उत्पादक उपभोक्ता एवं अब घटक से मिलकर बना होता है।
अजैविक घटक तालाब के पारिस्थितिक तंत्र में दो प्रकार के अजैविक घटक पाए जाते हैं।
अकार्बनिक घटक उदाहरण जल कार्बन डाइऑक्साइड ऑक्सीजन कैल्शियम नाइट्रोजन एवं फास्फोरस के यौगिक। कार्बनिक घटक उदाहरण – एमिनो अम्ल
जैविक घटक तालाब झील में निम्नलिखित जैविक घटक होते हैं
उत्पादक तलाब में कई प्रकार के उत्पादक पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो कि अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
उदाहरण
- तैरने वाले सूक्ष्म पौधे वॉलवॉक्स अनाबिका आदि।
- जलमग्न पौधे जैसे वेलिसनेरिया।
- स्वतंत्रप्लावी पादप सिंघाड़ा विस्टीरिया आदि।
- बड़े पत्ते वाले पाउडर कमल कुमुदिनी आदि।
उपभोक्ता यह तालाब के जंतु समूह को प्रदर्शित करते हैं इन्हें शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता मांसाहारी यह द्वितीय उपभोक्ता तथा तृतीय उपभोक्ता में विभक्त किया जा सकता है।
प्राथमिक उपभोक्ता यह पौधों या उनके अवशेषों का सेवन करते हैं। प्राणी पल्लव आख्या सूक्ष्मा भोक्ता डीजल की लहरों के साथ-साथ सतह पर तैरते हैं उदाहरण युगलीना और कोलेप्स।
द्वितीयक उपभोक्ता यह पानी में पाए जाने वाले छोटे जीव है जो प्राणी रिंकू का भक्षण करते हैं उदाहरण कीट छोटी मछलियां बिटक।
तृतीयक उपभोक्ता इन के अंतर्गत कुछ विशेष बड़ी मछलियां आती है। ये द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाती है। उदाहरण – गेम फिश।
उपघातक – तालाब के ताल पर पेड़-पौधे व् जलीय जिव के अवशेष को अपघटित करने वाले जीव होते है जैसे – मृतजीवी कवक और बैक्टीरियाआदि।
भारत में पारिस्थितिकी के जनक के रूप में किसे जाना जाता है?
भारत में पारिस्थितिकी के जनक के रूप में डॉ. रामदेव मिश्र को जाना जाता है। उन्होंने यूके के लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के तहत अपनी पीएच.डी की थी। और उन्होंने ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अपना शिक्षण और शोध पारिस्थितिकी और वनस्पति विज्ञान विभाग में किया था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित है। उनके शोध के कारण पौधों की आबादी, उत्पादकता, उष्णकटिबंधीय वन में पोषक चक्रण और घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र आदि की पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं को लोगो के लिए समझना संभव बना दिया था।
रामदेव मिश्रा ने भारत में पारिस्थितिकी की मजबूत नींव रखी। उन्होंने भारत में पारंपरिक विभागों में कई तरह से शिक्षण और अनुसंधान के लिए पारिस्थितिकी को एक प्रमुख अनुशासन के रूप में आकार देने में मदद की।
- उन्होंने भारत में पारिस्थितिकी में पहला स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तैयार किया।
- लगभग 50 विद्वानों ने पीएच.डी. रामदेव मिश्रा की देखरेख में डिग्री, और फिर वे देश भर में पारिस्थितिकी और अनुसंधान सिखाने के लिए अनुसंधान संस्थानों में चले गए।
- उन्हें पर्यावरण और पारिस्थितिकी में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
- उन्होंने पीएच.डी. पारिस्थितिकी में यूके में लीड्स विश्वविद्यालय से प्रोफेसर के रूप में
- उन्होंने वाराणसी में स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में पारिस्थितिकी में अपना शिक्षण और शोध किया है।
- उनके शोध ने पौधों की आबादी, उत्पादकता, उष्णकटिबंधीय जंगलों में पोषक चक्रण और चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र आदि की पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं को समझना संभव बना दिया।
ऊर्जा प्रवाह
पारिस्थितिकी में, उत्पादकता शब्द एक पारिस्थितिकी तंत्र में बायोमास के उत्पादन की दर को संदर्भित करता है। इसे अक्सर समय की प्रति इकाई प्रति आयतन द्रव्यमान की इकाइयों में व्यक्त किया जाता है, उदाहरण के लिए ग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रति दिन (जीएम −2 डी −1 )। उत्पादकता प्राथमिक या द्वितीयक हो सकती है। प्राथमिक उत्पादकता ऑटोट्रॉफ़्स की उत्पादकता को संदर्भित करती है, जैसे कि पौधे, जबकि द्वितीयक उत्पादकता हेटरोट्रॉफ़्स, जैसे कि जानवरों को संदर्भित करती है। (संदर्भ 8)
बायोमास का प्राथमिक उत्पादन अक्सर प्रकाश संश्लेषण करने वाले पौधों और शैवाल के लिए जिम्मेदार होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जीवों को उपलब्ध लगभग सारी ऊर्जा उन्हीं से शुरू होती है। (रेफरी। 3) सूर्य से ऊर्जा फोटोऑटोट्रॉफ़्स की कोशिकाओं के अंदर क्लोरोप्लास्ट (क्लोरोफिल युक्त ऑर्गेनेल, हरा वर्णक) द्वारा कब्जा कर ली जाती है। क्लोरोप्लास्ट के अंदर, प्रकाश ऊर्जा (फोटॉन के रूप में) चीनी अणुओं की तरह अकार्बनिक सबस्ट्रेट्स को ऊर्जा भंडार में परिवर्तित करती है। सामान्य तौर पर, जानवरों के पास प्रकाश ऊर्जा पर कब्जा करने के लिए ऐसे वर्णक नहीं होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण को सक्षम कर सकें। इसलिए, उन्हें भोजन के लिए ऑटोट्रॉफ़्स और / या अन्य हेटरोट्रॉफ़्स पर निर्भर रहना पड़ता है।
प्रकाश संश्लेषण एक जैविक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पौधे सूर्य से प्रकाश की सहायता से और अकार्बनिक स्रोतों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी) से अपने भोजन का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, वे ग्लूकोज अणुओं का उत्पादन करते हैं, जिन्हें बाद में स्टार्च के रूप में संग्रहित किया जा सकता है। पौधे, बदले में, उन जीवों के लिए एक खाद्य स्रोत के रूप में काम करते हैं जो अपने स्वयं के भोजन का उत्पादन करने में असमर्थ हैं।
इन पौधों को खाने से ऊर्जा (साथ ही पोषक तत्व) उत्पादक से उपभोक्ता तक प्रवाहित होती है। फिर, यह एक उपभोक्ता से दूसरे उपभोक्ता तक प्रवाहित होता है। भोजन में जटिल कार्बनिक अणु, जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन, उनके रासायनिक बंधों में संग्रहीत ऊर्जा के समृद्ध स्रोत हैं । ऑक्सीजन की उपस्थिति में, ग्लूकोज (एक चीनी अणु), उदाहरण के लिए, सेलुलर श्वसन के माध्यम से रासायनिक ऊर्जा (एटीपी) को संश्लेषित करने के लिए संसाधित किया जाता है।. खाद्य अणुओं में संग्रहीत ऊर्जा ऑक्सीकरण प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से जारी की जाती है। इलेक्ट्रॉनों को एक अणु से दूसरे तक तब तक पारित किया जाता है जब तक कि यह अंतिम इलेक्ट्रॉन स्वीकर्ता तक नहीं पहुंच जाता, जो कि ऑक्सीजन है। जैसा कि खाद्य अणु पूरी तरह से ऑक्सीकृत होता है, अंतिम उपोत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड होता है, जो जारी किया जाता है, उदाहरण के लिए पौधे के रंध्र में वाष्पोत्सर्जन और सांस लेने वाले जानवरों में साँस छोड़ना। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में, कोशिकाएं किण्वन करती हैं जिसमें एटीपी उत्पन्न करने और लैक्टिक एसिड उत्पन्न करने के लिए ग्लूकोज टूट जाता है। जानवरों में, आहार स्रोतों से अतिरिक्त ऊर्जा ऊर्जा-समृद्ध अणुओं, जैसे ग्लाइकोजन और लिपिड में संग्रहित होती है।
डीकंपोजर जीवों का अंतिम समूह है जिसके माध्यम से ऊर्जा प्रवाहित होती है। वे सभी जीवित चीजों के गोबर और शवों का सेवन करते हैं।
नीचे दिए गए चित्र को देखें। यह एक खाद्य श्रृंखला और ऊर्जा और पोषक तत्वों के प्रवाह का एक सरल चित्र दिखाता है। इसकी शुरुआत पौधों जैसे उत्पादकों से होती है, जो सूर्य से प्रकाश ऊर्जा प्राप्त करके भोजन का निर्माण करते हैं। उपभोक्ताओं के बगल में ऊर्जा प्रवाहित होती है, विशेष रूप से प्राथमिक उपभोक्ता (कीड़े), द्वितीयक उपभोक्ता (मेंढक), तृतीयक उपभोक्ता (साँप), और अंत में, चतुर्धातुक उपभोक्ता (ईगल)। फिर, डीकंपोजर द्वारा चील की लीद या शव को तोड़ा जाएगा।
जैव भू-रासायनिक या पोषक चक्रण
कार्बन, नाइट्रोजन या फॉस्फोरस जैसे तत्व एक जीवित जीव में विभिन्न तरीकों से प्रवेश करते हैं। एक उदाहरण पौधों द्वारा सीधे उन्हें अपने भौतिक वातावरण से ले जाना है, उदाहरण के लिए मिट्टी में उपलब्ध जड़ों को अवशोषित करने वाले तत्वों और रंध्रों के माध्यम से प्रवेश करने वाली गैसों के माध्यम से। जानवरों में, ये तत्व भोजन की खपत के माध्यम से प्रवेश करते हैं। सड़ने वाले और सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थ डीकंपोजर द्वारा टूट जाते हैं, अंततः इन तत्वों को पोषक चक्रण के लिए, या अन्य जीवित जीवों द्वारा उपयोग के लिए जारी करते हैं। यह पारिस्थितिक प्रक्रिया जिसमें डीकंपोजर कार्बनिक पदार्थों को डीकंपोजर द्वारा तोड़ते हैं, अपघटन कहलाते हैं । अपघटन में, ये सामग्री न तो नष्ट होती है और न ही नष्ट होती है और इसलिए इस संबंध में ग्रह एक बंद प्रणाली है. पारिस्थितिक तंत्र के भीतर तत्वों को जैविक और अजैविक अवस्थाओं के बीच चक्रित किया जाएगा।