
पृथ्वी के आंतरिक हाल चरणों के कारण उठाने वाली लहरे जब पृथ्वी के भूपटल पर विनाश लीला मचाती है तो उसे भूकंप कहते हैं । भूकंप कई प्रकार के होते हैं तथा अलग-अलग कारणों के कारण उत्पन्न होते हैं ।
भूकंप के कारण
- पृथ्वी के आंतरिक हलचल के कारण
- दो प्लेटों को आपस में टकराने के कारण
- ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
- मानव की द्वारा किए गए शक्तिशाली विस्फोट के कारण

भूकंप के प्रभाव
- भवनों का टूट जाना
- पुलों का नष्ट हो जाना
- जमीन में दरार पड़ जाना
- जनधन की अपार हानि
- नदियों का मार्ग बदल जाना
भूकंप का मापन
भूकंप का मापन सिस्मोग्राफ नामक यंत्र से किया जाता है ।
भूकंप को मापने के लिए अलग-अलग पैमाने का उपयोग किया जाता है लेकिन रिक्टर स्केल पर ही सबसे ज्यादा भूकंप का मापन किया जाता है ।
भूकंप के बचाव के उपाय
भूकंप के बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
- भूकंप का पूर्वानुमान
- भवन का निर्माण भूकंप रोधी तकनीक के सहारे किया जाए
- जान माल की सुरक्षा
- प्रशासनिक कार्य
- गैर सरकारी संगठनों का सहयोग
भारत में भूकंप का क्षेत्र
भारत में भूकंप के क्षेत्रों को मुख्य रूप के पांच भागों में बांटा गया है जो निम्नलिखित है
भूकंप जोन 1
भूकंप जोन 1 के अंतर्गत दक्षिण भारत का पठारी क्षेत्र शामिल किया जाता है यहां पर भूकंप की संभावना नहीं की बराबर होती है लेकिन कभी-कभार भूकंप आ जाया करते हैं जिसके प्रवक्ता बहुत कम होती है अतः यह क्षेत्र भूकंप के कम से कम प्रभावित होता है
भूकंप जोन 2
भूकंप जोन 2 के अंतर्गत प्रायद्वीपीय भारत की कुछ भाग तथा तटीय मैदान शामिल किए जाते हैं । यह सीमित खतरा वाला क्षेत्र है यहां पर भी खतरा होता है लेकिन दूसरे भागों की अपेक्षा यहां पर खतरा कम होता है ।
भूकंप जोन 3
भूकंप जोन 3 के अंतर्गत मुख्य रूप से गंगा तथा सिंधु के मैदान , राजस्थान राज्य का कुछ भाग उत्तरी गुजरात के कुछ भाग शामिल किए जाते हैं यहां पर भूकंप के प्रभाव देखने के लिए मिलते हैं लेकिन विनाशकारी प्रभाव बहुत कम देखने के लिए मिलते हैं । बिहार में 1934 में तथा 2008 में इस प्रकार के भूकंप के झटके देखने के लिए मिला था ।
भूकंप जोन 4
भारत के भूकंप जोन 4 में पहले के 1 , 2 ओर 3 जोन के अपेक्षा खतरे की संभावना काफी बढ़ जाती है । इसके अंतर्गत मुख्य रूप से शिवालिक हिमालय का क्षेत्र पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग और कम घाटी तथा पूर्वोत्तर भारत का क्षेत्र शामिल किया जाता है । भूकंप जोन चार के अंतर्गत ही अंडमान निकोबार दीप समूह के कुछ भाग आ जाते हैं ।
भूकंप जोन 5
भूकंप जोन पांच भारतीय भूकंप जोन का सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला या सबसे ज्यादा खतरा वाला प्रदेश है । इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ प्रदेश जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र 15 तथा दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र आता है भारत के ही प्रदेश में कई विनाशकारी भूकंप आ चुके हैं और भविष्य में इस प्रकार के भूकंप के आने की आशंका भी जताई जाती है क्योंकि यह प्रदेश भारत का सबसे ज्यादा भू गतिशील प्रदेश है ।
भूकंपीय तरंगे
भूकंप के समय उठने वाली कंपन को भूकंपीय तरंगों के रूप में जाना जाता है यह मुख्य रूप से तीन प्रकार के होती है ।

प्राथमिक तरंगे
भूकंप की पी तरंगी सबके पहले पृथ्वी की सतह पर पहुंची है । पी तरंगें, या प्राथमिक तरंगें, सीस्मोग्राफ पर पहुंचने वाली पहली तरंगें होती हैं । P तरंगें सबसे तेज़ भूकंपीय तरंगें हैं और ठोस, तरल या गैस के माध्यम से आगे बढ़ सकती हैं। जिस माध्यम से वे चलते हैं, उस पर वे अपने पीछे संपीडन और विरलन का निशान छोड़ जाते हैं। इसी कारण P तरंगों को दाब तरंगें भी कहा जाता है।
द्वितीयक तरंगे
यह तरंगे अनुप्रस्थ तरंगे होती है इनकी गति प्राथमिक तरंगों की अपेक्षा कम होती है । इन्हें गौण तरंगें (Secondary waves) अथवा अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves) भी कहते हैं. इन तरंगों की संचरण दिशा तथा कणों के दोलन की दिशा एक-दूसरे के समकोण पर होती हैं. इन तरंगों की औसत गति 4 किमी. प्रति सेकेण्ड होती है. ये तरंगें केवल ठोस माध्यम से ही गुजर सकती हैं, जबकि तरल माध्यम में लुप्त हो जाती है.
L दीर्घ तरंगे
यह सबसे विनाशकारी तरंगे होती है । इन्हें धरातलीय या लम्बी तरंगों (Surface or Long Waves) के नाम से भी जाना जाता है. इन तरंगों की खोज H. D. Love ने की थी, इसलिए इन्हें Love Waves के नाम से भी जाना जाता है. ये तरंगें मुख्यतः धरातल तक ही सीमित रहती हैं. ये तरंगें ठोस, तरल तथा गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती हैं. इनकी गति 3 किमी. प्रति सेकेण्ड होती है ।
भूकंपीय तरंगों का व्यवहार
- सभी भूकंपीय तरंगों का वेग अधिक घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर बढ़ जाता है तथा कम घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर बढ़ जाता है ।
- पृथ्वी के आन्तरिक भाग में चट्टानों का घनत्व बढ़ जाने से भूकंपीय तरंगों के वेग में भी वृद्धि हो जाती है ।
- भू-पृष्ठ पर P-तरंगों की गति लगभग 7 किमी. प्रति सेकेण्ड तथा S-तरंगों की गति लगभग 5 किमी. प्रति सेकेण्ड होती है. लेकिन 1000 किमी. की गहराई पर P-तरंगों की गति 11 किमी. प्रति सेकेण्ड तथा S-तरंगों की गति 6 किमी. प्रति सेकेण्ड हो जाती है ।
- पृथ्वी पर भूकंपीय तरंगों की सबसे अधिक गति 2900 किमी. की गहराई पर होती है. जहां P-तरंगों की गति 13.7 किमी. प्रति सेकेण्ड तथा S-तरंगों की गति 7.3 किमी. प्रति सेकेण्ड होती है ।
- 2900 किमी. की गहराई से पृथ्वी का क्रोड शुरू होता है. इस गहराई पर P-तरंगों की गति में आश्चर्यजनक रूप से कमी होती है और यह गति घट कर 8.4 किमी. प्रति सेकेण्ड रह जाती है. इसका कारण यह है कि क्रोड के तल पर पहुंचने पर P-तरंगें बड़े पैमाने पर परावर्तित और अपवर्तित होती हैं. लगभग 5000 किमी. की गहराई पर P-तरंगों की गति में पुनः परिवर्तन होता है, क्योंकि यहां बाह्य क्रोड समाप्त होता है और आन्तरिक क्रोड शुरू होता है ।