सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन क्या है?
सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन पृथ्वी की परिक्रमा और उसकी धुरी के झुकाव के कारण होने वाली खगोलीय घटनाएं हैं। ये घटनाएं मुख्य रूप से दिन-रात की अवधि और मौसम में बदलाव को प्रभावित करती हैं। इन दोनों अवधियों को समझने के लिए हमें पृथ्वी के झुकाव और सूर्य के सापेक्ष उसकी स्थिति को समझना होगा।
1. उत्तरायण
अवधि: 22 दिसंबर से 21 जून तक
- उत्तरायण का अर्थ है सूर्य का उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना।
- जब सूर्य कर्क रेखा (Tropic of Cancer) की ओर बढ़ता है, तो इसे उत्तरायण कहते हैं।
- इस समय के दौरान दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। यह प्रक्रिया सर्दियों के अंत से शुरू होकर गर्मियों तक चलती है।
- उत्तरायण का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन से होता है, जो 14 या 15 जनवरी के आसपास पड़ता है।
महत्त्व:
- भारत में उत्तरायण को शुभ माना जाता है।
- इस अवधि में फसल कटाई के त्योहार जैसे मकर संक्रांति, पोंगल और लोहड़ी मनाए जाते हैं।
2. दक्षिणायन
अवधि: 21 जून से 22 दिसंबर तक
- दक्षिणायन का अर्थ है सूर्य का दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ना।
- जब सूर्य मकर रेखा (Tropic of Capricorn) की ओर बढ़ता है, तो इसे दक्षिणायन कहते हैं।
- इस समय के दौरान दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं। यह प्रक्रिया गर्मियों के अंत से शुरू होकर सर्दियों तक चलती है।
महत्त्व:
- दक्षिणायन का आरंभ ग्रीष्म संक्रांति (21 जून) के समय होता है।
- यह समय आत्म-चिंतन, साधना और स्वास्थ्य सुधार के लिए अनुकूल माना जाता है।
कैसे होता है उत्तरायण और दक्षिणायन?
- पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23.5 डिग्री के झुकाव के साथ घूमती है।
- सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की अण्डाकार परिक्रमा के कारण, साल के अलग-अलग समय पर सूर्य पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के अधिक नजदीक या दूर होता है।
- जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध के नजदीक होता है, तब उत्तरायण और जब दक्षिणी गोलार्ध के पास होता है, तब दक्षिणायन होता है।
उत्तरायण और दक्षिणायन का प्रभाव न केवल मौसम और दिन-रात की अवधि पर पड़ता है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। यह घटनाएं हमें प्रकृति के चक्र और उसकी सुंदरता को समझने में मदद करती हैं।