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मृदा किसे कहते हैं ? इसका निर्माण कैसे होता है ?

 

मृदा किसे कहते हैं

मिट्टी का निर्माण चट्टानों के टूटने से शुरू होता है। टूटने की यह प्रक्रिया वर्षा , बर्फ , हवा, ग्लेशियर तथा बहते पानी के कारण निरंतर चलती रहती है। रसायनिक कारण : नमी और वायु रसायनिक कारण है । विभिन्न रासायनिक यौगिक पानी में घुल कर कर रसायनिक क्रियाएं करती हैं जिससे चट्टाने मिट्टी में परिवर्तित हो जाती हैं।

मृदा (मिट्टी) का निर्माण-हजारों और लाखों वर्षों के लम्बे समयांतराल में पृथ्वी की सतह या उसके समीप पाए जाने वाले पत्थर विभिन्न प्रकार के भौतिक, रासायनिक और कुछ जैव प्रक्रमों के द्वारा टूट जाते हैं। टूटने के बाद सबसे अन्त में बचा महीन कण मृदा है। सूर्य, जल, वायु और जीव, मृदा निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मृदा-पृथ्वी की सतह या उसके समीप पाये जाने वाले पत्थर विभिन्न प्रकार के भौतिक, रासायनिक और कुछ जैव प्रक्रमों के द्वारा टूट जाते हैं । टूटने के बाद सबसे अन्त में बचा महीन कण मृदा है। यह एक मिश्रण है। इसमें विभिन्न आकार के छोटे-छोटे टुकड़े मिले होते हैं। इसमें सड़े-गले जीवों के टुकड़े भी मिले होते हैं, जिसे ह्यूमस कहते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव भी मिले होते हैं। मृदा के प्रकार का निर्णय उसमें पाए जाने वाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित करते हैं । मृदा के गुण को उसमें स्थित ह्यूमस की मात्रा और पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के आधार पर आंका जाता है। मृदा संरचना का मुख्य कारक ह्यूमस है, क्योंकि यह मृदा को सरन्ध्र बनाता है और वायु तथा जल को भूमि के अन्दर जाने में सहायक होता है। खनिज पोषक तत्व जो उस मृदा में पाए जाते हैं, वह उन पत्थरों पर निर्भर करते हैं जिनसे मृदा बनी है। किस मृदा पर कौनसा पौधा होगा, यह इस पर निर्भर करता है कि उस मृदा में पोषक तत्व कितने हैं. हमस की मात्रा कितनी है और उसकी गहराई क्या है। इस प्रकार. मदा की ऊपरी परत में, जिसमें मदा के के अतिरिक्त ह्यूमस और सजीव स्थित होते हैं, उसे उपरिमृदा कहा जाता है।

मृदा किसे कहते हैं 2


मिट्टी निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक

आमतौर पर पांच प्रमुख कारक माना जाता है जो मिट्टी के गठन को प्रभावित करते हैं, जिन्हें अक्सर पांच मिट्टी बनाने वाले कारक के रूप में संदर्भित किया जाता है। ये कारक हैं:

जलवायु:

तापमान, वर्षा और हवा के पैटर्न सहित, जो अपक्षय और कटाव की दर को प्रभावित कर सकते हैं, साथ ही मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों के संचय को भी प्रभावित कर सकते हैं।

मूल शैल:-

अंतर्निहित चट्टानें या तलछट जो मिट्टी बनाने के लिए समय के साथ मौसम में और टूट जाती हैं। मूल सामग्री के प्रकार का मिट्टी के गुणों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें बनावट, पोषक तत्व सामग्री और पीएच शामिल हैं।

स्थलाकृति:-

भूमि की सतह का आकार और विशेषताएं, जो पानी की गति और मिट्टी में पोषक तत्वों और खनिजों के वितरण को प्रभावित कर सकती हैं।

जीव:-

पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों सहित, जो अपनी जड़ों और पत्तियों के माध्यम से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ का योगदान कर सकते हैं, कार्बनिक पदार्थों को तोड़ सकते हैं, और पौधे के विकास के लिए पोषक तत्वों को छोड़ सकते हैं।

समय:-

मिट्टी को पूरी तरह से विकसित करने में सैकड़ों या हजारों साल लगते हैं, और समय के साथ, मिट्टी अलग -अलग परतों या क्षितिज के साथ अधिक जटिल और विविध हो सकती है जो विकास के विभिन्न चरणों को दर्शाती हैं।

मृदा का क्या महत्त्व है ?

(i) मृदा पादपों की जड़ों को दृढ़ता से थामे रखकर तथा उन्हें जल और पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करके उनकी वृद्धि में सहायता करती है।
(ii) यह अनेक जीवों को आश्रय देती है।
(iii) कृषि के लिए मृदा अनिवार्य है।
(iv) यह भवनों को सहारा देती है।
(v) इससे बर्तन, खिलौने और मूर्तियाँ आदि बनाये जाते हैं। उपर्युक्त के अलावा अन्य बहुत से कार्यों में मृदा का उपयोग किया जाता है।

मिट्टी संरक्षण से आप क्या समझते हैं?

मृदा संरक्षण की विधियाँ हैं – 

  • वनों की रक्षा
  • वृक्षारोपण
  • बांध बनाना
  • भूमि उद्धार
  • बाढ़ नियंत्रण
  • अत्यधिक चराई पर रोक
  • पट्टीदार व सीढ़ीदार कृषि,
  • समोच्चरेखीय जुताई
  • शस्यार्वतन