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बाढ़ किसे कहते हैं?

 बाढ़ भू-पटल पर अधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदा है। बाढ़ के प्रभाव से एक विस्तृत भू-भाग जलमग्न हो जाता है एवं इससे विस्तृत पैमाने पर जन-धन की हानि होती है।

सामान्यतया बाढ़े नदी मे सीमा से अधिक जल जा आ जाने के कारण आती है। इस संदर्भ मे कहा गया है,” बाढ़ नदी की एक ऐसी उच्च अवस्था है, जिसमे नदी सामान्यतया अपने विशिष्ट पहुँच वाले प्राकृतिक बाँधों को तोड़कर बहने लगती है। 

1. अत्यधिक वर्षा 

किसी स्थान मे लगातार कई दिनों तक भीषण वर्षा होने से नदियों का जल-स्तर बढ़ने लगता है जिसके परिणामस्वरूप नदियों के समीपवर्ती भू-भाग जलमग्न हो जाते है। अत्यधिक वर्षा के निम्न दो कारण होते है– 

2. वादलो का फटना 

इससे प्रायः विद्युत की चमक तथा मेघ-गर्जन के साथ अचानक तथा तेजी से होती है, इसमे कम समय के अन्तराल मे ही ऐसी घनघोर वर्षा होती है कि नदियों मे बाढ़ आ जाती है तथा निचले इलाके जलमग्न हो जाते है।

3. चक्रवात 

सागरो के तटवर्ती भागों मे चक्रवर्तीय हवाओं से प्रचण्ड रूप से भारी वर्षा होती है जिसके कारण तटवर्ती भागों मे अत्यधिक जन-धन की हानि होती है। साथ ही तटीय भाग जलमग्न हो जाते है।

4. वनों का ह्रास 

वनों की कटाई से भू-क्षरण की दर बढ़ रही है जिसके कारण नदियों, जलाशयों की जलसंग्रहण क्षमता मे कमी होती है। वनो की कटाई के कारण भूमि द्वारा जल अवशोषण की दर मे कमी होने से जलाशय तथा नदियों मे जल-स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण प्रतिवर्ष विश्व की लाखों हेक्टेयर भूमि बाढ़ग्रस्त हो जाती है।

5. नदी तल मे अवसादों का जमाव 

पर्वतों से निकलने वाली नदियां मैदानी भागों मे प्रवेश करते समत भारी मात्रा मे अवसादों को साथ बहाकर लाती है। ये अवसाद मिट्टी तथा बालू के रूप मे नदी के तली पर विक्षेपित होते जाते है जिसके कारण नदी की तली निरन्तर उतली होती जाती है तथा नदी मे जल-संग्रहण की क्षमता कम हो जाती है। इस कारण वर्षाकाल मे बाढ़ों की तीव्रता मे वृद्धि हो जाती है।

6. जलग्रहण क्षेत्र का विस्तृत होना 

किसी क्षेत्र अथवा प्रदेश के जल-संग्रहण का क्षेत्र अधिक विस्तृत होने पर मध्यम वर्षा के समय जल की भारी मात्रा का संग्रहण होता है तथा साथ ही जल की अधिकता से बाढ़ की सम्भावनाये बढ़ जाती है।

7. जल निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था 

अपवाह प्रबंधन की सुचारू व्यवस्था न होने के कारण बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। अपवाह प्रबंध के अव्यवस्थित होने के कई कारण हो सकते है जिनमें भू-स्खलन के कारण उत्पन्न अवरोध, नदी बहिकाओं का स्पष्ट विकसित न होना, नदियों मे विर्सपों का अधिक मात्रा मे होना, नदियों की वहन क्षमता मे कमी, डेल्टा के मुहानों का बालू रोधिका के निर्माण मे अवरूद्ध हो जाना प्रमुख है।

8. जलाशयों मे अवसादी जमाव की अधिकता

बाढ़ो को नियंत्रित करने के लिये नदियों पर बड़े जलाशयों का निर्माण किया जा रहा है। भू-क्षरण से बहकर आने वाली लाखों टन मिट्टी प्रतिवर्ष जलधाराओं मे मिलकर जलाशयों मे एकत्रित हो रही है। वनों के काटे जाने से भू-क्षरण की मात्रा बढ़ रही है तथा जलाशयों मे अवसादों के जमा होने की दर भी बढ़ रही है जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

बाढ़ के प्रभाव

बाढ़ से होने वाले दुष्प्रभाव निम्न है–

1.फसलों का नुकसान 

बाढ़ से प्रमुख रूप से फसलें नष्ट हो जाती है। 74 लाख हेक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित होती है। 2 अरब से भी अधिक रूपये का नुकसान होता है।

2. जनजीवन की हानि 

प्रतिवर्ष बाढ़ के प्रभाव से हजारों लोगों की मृत्यु हो जाती है व कइयों के पशु मर जाते है व मकान गिर जाते है। 

3. यातायात मे व्यवधान 

बाढ़ से सड़के टूट जाती है व यातायात बाधित हो जाता है।

4. बीमारियों मे वृद्धि 

बाढ़ मे मृत मनुष्यों, जीवों व जानवरों से अत्यधिक मात्रा मे, रोगाणु फैलते है जो विभिन्न प्रकार की बीमारियां तथा महामारी फैलाते है।

5. जैव प्रजातियों की हानि 

कई संवेदनशील जैव प्रजातियां बाढ़ के कारण नष्ट हो जाती है।

7. आर्थिक दबाव 

बाढ़ से हुई क्षति की पूर्ति के लिए सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ जाता है। अतः ऐसी स्थिति मे गैर-बाढ़ पीड़ित लोगों पर अस्थायी टैक्स लगाते है जिससे लोगों पर आर्थिक दबाव पड़ता है।

बाढ़ रोकने (नियंत्रण) करने के उपाय

बाढ़ रोकने के उपाय अथवा सुझाव इस प्रकार हैं– 

1. जलग्रहण क्षेत्र मे वृक्षारोपण कर मृदा अपरदन की दर कम करके विभिन्न भागों मे बोरिंग कर डग कुओं का निर्माण किया जाये। इससे एक ओर भूमिगत जल के स्तर मे वृद्धि होगी तथा दूसरी ओर धरातलीय जल प्रवाह की मात्रा मे भी कमी होगी, जिससे बाढ़ के प्रकोप को कम किया जा सकेगा।

2. मुख्य नदी की सहायक नदियों पर छोटे-छोटे जलसंग्रह बाँध अनेक स्थानों पर निर्मित किये जाये, जिससे मुख्य नदी मे जल के आयतन मे अधिक वृद्धि नही होगी तथा बाढ़ के प्रकोपों से होने वाली हानियों को कम करने मे सफलता प्राप्त होगी।

3. नदियों पर निर्मित बाँध तथा जलाशयों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ जलाशयों की सामयिक सफाई होती रहनी चाहिए।

4. नदियों तथा जलधाराओं के प्राकृतिक प्रवाह मार्ग मे आने वाले अवरोधों को दूर करना चाहिए।

5. नदियों तथा उनकी सहायक नदियों की तली की सामयिक सफाई होती रहना चाहिए।ल

6. मुख्य नदी के अतिरिक्त जल को अन्य चैनल निर्मित कर वितरित कर देना चाहिए, ताकि बाढ़ का प्रकोप कम हो सके।